पिछले कुछ सालों में जितनी तेज़ी से हमारे आसपास की दुनिया बदली है, उसी तेज़ी से शब्दों-कविता-कहानियों की दुनिया भी बदली है. कई दफा कविताएं नकली और नाटकीय लगती हैं, जैसे एहसासों और जज़्बातों से न जन्मी हों, बल्कि सिर्फ कहने के लिए लिखी जा रही हैं और उनका मकसद अधिक से अधिक वाहवाही लूटना हो, लेकिन इसी शोर करते पीआर के दौर में जब अनुराग वत्स की कविताएं आंखों के सामने से गुज़र जाएं तो उन्हें ठहर कर पढ़ने की इच्छा बेचैन हो उठती है. अनुराग की छोटी से छोटी कविता भी एक गहरी और ज़रूरी कहानी कहती है, जिस पर रुक कर सोचने का दिल करता है.
हाल में रुख़ पब्लिकेशंस से आई अनुराग वत्स की कविता-पुस्तक ‘उम्मीद प्रेम का अन्न है’ बेहद ख़ास है. पुस्तक के कवर से लेकर पुस्तक के भीतर बैठी कविताएं सबकुछ अपने आप में खूबसूरती से रचे-गढ़े गए हैं और पास खींच कर बिठा लेते हैं. पन्ने पलते हुए हर कविता बहुत कुछ कहना चाहती है, जैसे किसी सुबह, किसी दोपहर, किसी शाम या फिर किसी रात की अनकही कहानी… किसी अहसास, किसी जज़्बात की एक ऐसी कहानी जिसे यकीनन कई बार लिखा गया होगा, लेकिन लहज़ा और शब्द ऐसे न होंगे, जिस तरह अनुराग ने अपने शब्दों में पिरोया है.
1984 में बिहार में जन्में अनुराग वत्स ने दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया से स्नाकोत्तर किया और पिछले कई सालों से दिल्ली में ही रच-बस गए हैं. बात चाहे साहित्य की हो या फिर विश्व सिनेमा की, फुटबॉल की हो या फिर फोटोग्राफ़ी की, सभी में अनुराग की गहरी दिलचस्पी है. नवभारत टाइम्स में एक दशक से ज़्यादा वक्त तक पत्रकारिता करने के साथ-साथ अनुराग ने लोकप्रिय ब्लॉग ‘सबद’ को सफलतापूर्वक संचालित किया, साथ ही ‘बिंज’/’नोशन प्रेस हिंदी’ ऐप पर भरपूर समय देते हुए उसके आगे बढ़ने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. गौरतलब है, कि अनुराग ने ‘राजकमल प्रकाशन’ से साल 2014 में आई लोकप्रिय साहित्यकार और कवि ‘कुंवर नारायण’ की पुस्तक का भी संपादन किया. अनुराग ‘रुख़ पब्लिकेशन्स’ के संस्थापक भी हैं और इन दिनों अपना पूरा ध्यान पूरा समय रुख़ में ‘संपादक’ की ज़िम्मेदारी निभाते हुए अपने लेखन को दे रहे हैं.
कविता साभार : उम्मीद प्रेम का अन्न है
‘उम्मीद प्रेम का अन्न है’ अनुराग वत्स की पहली कविता-पुस्तक है, जिसमें उन्होंने अपने आत्मकथ्य को भी पाठकों से साझा किया है. अपनी कविताओं के बारे नें अनुराग लिखते हैं, “कविताएं पढ़ीं ज़्यादा, लिखीं कम. पढ़ते हुए अपने लिखे को बार-बार भूलता रहा. याद आने पर संदेह बना रहा. इसलिए कवि-छवि से हमेशा मुक्त रहा. कविताओं की इस किताब से मुमकिन है मुक्ति का वह एहसास कुछ कम हो, लेकिन पूरी तरह जाएगा नहीं. मेरी कविताएं ख़ामोशी में पढ़ी जानेवाली चिट्ठियां हैं. इनकी प्रेरणा प्रेम है. युद्ध और हत्या से सने इस समय में मेरे पास प्रेम से भिन्न कहने को कुछ नहीं.”
कविता-पुस्तक ‘उम्मीद प्रेम का अन्न है’ में अनुराग वत्स ने प्रेम के उन एहसासों को छूने की सफल कोशिश की है, जिन पर हम बहुत कुछ महसूस तो करते हैं, लेकिन शब्दों में उस तरह से शायद अब तक कोई नहीं बांध सका, जिस तरह अनुराग ने गढ़ दिया है… बात चाहे कविता ‘पूर्ण-विराम’ की हो या फिर ‘अनुपस्थिति का आकार’, ‘बारिश में आशिक़ी’, ‘स्मृतियों का अनंत’, ‘मेरे भीतर तुम’, ‘प्रेम के सुनसान में’, ‘वह विद्या सिन्हा थी’, या ‘ऐसे भी संभव है मृत्यु’ की हो. पुस्तक की हर कविता साथ बैठ कर कम शब्दों में ही एक संपूर्ण कहानी गढ़ देती है. मुश्किल होता है कम शब्दों में अपनी पूरी बात को कह देना, लेकिन कम शब्दों में सबकुछ कह देने की छटपटाहट अनुराग की कविताओं में देखते बनती है. जिस खूबसूरती से उन्होंने हर कविता को शुरू और खत्म किया है, वह उनकी कविताओं की दुनिया को समझने के लिए काफ़ी है.
अनुराग की कविताओं के बारे में ‘प्रेम गिलहरी दिल अखरोट’ की लेखिका बाबुषा कोहली लिखती हैं, “अनुराग कविता के आंगन में दबे पांव जाते हैं और उसे निपट वैसा ही देख पाते हैं जैसी वह अपने मूल रूप में है, बिना किसी अतिरिक्त आरोपण और बनाव-श्रृंगार के. आज के समय में जब प्रेम कविताओं के साथ ऐसा संकोची आचरण लगभग असंभव हो गया है, वह एक विरल कवि की तरह लिक्खाड़ों के मोहल्ले में अपना पहला क़दम रखते हैं. कवि के तौर पर उनका संकोच इन कविताओं में इस तरह झिलमिलाता है, जैसे संध्या आरती के दीयों की रोशनी नदी में झिलमिलाती है और पानी से टकराकर एक जगमगाते दृश्य का रचाव करती है. कठिन कविता लिखना बहुत कठिन काम नहीं है, असल चुनौती सरल कविता में कविता को बचाए रखने की है. अनुराग अपनी स्वाभाविक सहजता के साथ कविता में उस अलक्षित तरलता को सहेज पाते हैं. एक कविता-प्रेमी के तौर पर उनकी कविताओं से गुज़रते हुए मुझे यह आश्वस्ति मिलती है कि ये कविताएं जीवन की धूप में पर्याप्त सिंकी हुई हैं, मगर कहीं से भी जली हुई नहीं. कविता जिन लोगों के लिए भोजन-पानी का काम करती है, अनुराग की कविताएं उन्हें जीवन-ऊर्जा से भरेंगी. ये ज़ेहन की ज़ुबान पर लंबे समय तक बने रहने वाले स्वाद की कविताएं हैं.”
इतना सब कहने, सुनने और पढ़ने के बाद अनुराग की कविताओं के बारे में और क्या ही लिखा जाए, उनकी कविताओं को समझना है तो किताब को हाथ में लेकर पढ़ना बेहद ज़रूरी हो जाता है. ‘उम्मीद प्रेम का अन्न है’ को घर मंगवाकर पढ़ने के लिए पुस्तक ऑनलाइन भी उपलब्ध है, जिसे लिंक पर जाकर ऑर्डर किया जा सकता है. लेकिन इससे पहले पुस्तक से ये तीन छोटी कविताएं पढ़ते जाएं, ताकि बाकी कि कविताओं को पढ़ने की इच्छा बरकरार रहे…
एकांत
हम प्रेम का घर थे
अब दुविधा के दो एकांत हैं
‘तुम नहीं रहोगी’ के एकांत में मैं रहता हूं
‘तुम नहीं रहोगी’ का एकांत ही मेरा घर है.
इंतज़ार
घर साफ़-सुथरा करके बैठता हूं
तो वह तुम्हारे इंतज़ार से भर जाता है
तब बीच की उंगली में लगन की अंगूठी निहारते सोचता हूं :
मध्यमा की शोभा और मेरे सौभाग्य में उतना ही फ़र्क़ है
जितना तुम्हारे मित्र हाथ की नरमाई
और उसे अकेले याद करने की तकलीफ़.
तस्वीर
तस्वीर तकलीफ़ को बंटने नहीं देती
तुम उसे चिंदी करके फेंक दो
तो भी याद में वह साबुत रहती है
चेहरे के तमाम तिल-धब्बों के साथ.
पुस्तक : उम्मीद प्रेम का अन्न है
लेखक : अनुराग वत्स
प्रकाशक : रुख़ पब्लिकेशंस
मूल्य : 150 रुपए
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Tags: Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature, Poem, Poet
FIRST PUBLISHED : January 16, 2024, 12:45 IST